सच नही कहानी
लाल चूजे ने काला
अंडा तोड़ दिया, और भोर हो गयी। पेड़ो की फुनगियों पर उगते नए गुलाबी खिलौनों को देख चिड़ियों के बच्चे कलरव करने लगे थे। उनींदी हवाओं
को झकझोरती हुई ट्रेन पूरी रफ्तार से
भागी जा रही थी |ट्रेन की जो खिड़कियाँ खुली हुई थी उनसे झाँक कर सूरज ने सुबह होने का एलान कर
दिया था | पर शायद प्रशांत ने
इसे अनसुना कर दिया| पाँव में लिपटे चादर को खींच
कर उसने अपने मुँह को ढ़क लिया , मानो इस चादर के सहारे वह इस
सुबह को होने से रोक देगा , और शायद उस सुबह को भी.....
“सुबह हो गयी है...." एक
कड़कती आवाज वायरलेस सेट पर गूंजती है | " गाँव की घेराबंदी की जा चुकी है, और जैसा कि आपको ब्रीफ किया गया था फर्स्ट लाइट के साथ हमारा सर्च ऑपरेशन शुरू
होगा " | ..."प्रशांत ...!" पैरों में हल्की झुरझुरी से चादर सरक कर मुँह के नीचे आ गया ,
प्रशांत ने अनमने ढ़ंग से उसे फिर से खींच कर सर के नीचे दबा लिया |
...."प्रशांत ....! , आप सर्च पार्टी के कमांडर है, बी अलर्ट एंड गुड
लक...नाऊ मूव" | वायरलेस चुप हो गया | प्रशांत को लगा जैसे उसे थूक निगलने में परेशानी हुई हो |.... " यह दो हिस्सों में बँटा एक बड़ा गाँव है , इसलिए हम दो सर्च पार्टी
बनायेंगे " प्रशांत की आवाज धीरे-धीरे स्थिर हो रही थी | " पहली पार्टी गाँव के बाएँ हिस्से में
सर्च करेगी और दूसरी पार्टी दाहिने हिस्से में , पहली पार्टी के साथ मै रहूँगा और दूसरी पार्टी के
साथ रेहान तुम रहोगे " | "यस सर " रेहान चुप था पर उसके सावधान होने में प्रशांत
ने यही सुना था | " सर्च करने का तरीका आपको पहले ही बताया जा चुका है ,
रेहान तुम अपनी
पार्टी को ले कर अब मूव करो ...एंड टेक केयर ....| आख़री दो शब्द शायद प्रशांत ने अपने आप से कहे थे | दोनों पार्टियाँ अलग-अलग दिशाओं में
शिथिल कदमों से चलने लगी | चार दिनों की कड़ी मिहनत से थके हारे इन फौजिओं पर शायद हवाओं को भी तरस आ रहा
था | अपने शीतल स्पर्श से
वो इनकी सारी थकावट हर लेना चाहती थी |
पर शायद उसे यह पता नहीं था कि यह स्पर्श उन फौजिओं को
नींद के आगोश में ले जायेगा, जहाँ जाने की उन्हें अभी इजाजत नहीं
दी गयी है | "मुश्किल वक्त कमांडो सख्त " ट्रेनिंग में सुने
ये शब्द ही प्रशांत के नींद से बोझिल पैरो को घसीट रहे थे| उसे अभी बहुत सारे काम निपटाने थे |
"सर्च आपरेशन एक
लम्बा और थकाऊ आपरेशन होता है, कमांडर को हमेशा अलर्ट रहना होता है...." ट्रेनिंग के उस्ताद की आवाज
धीरे-धीरे दूर होती जा रही थी , नींद और थकान की गहराई में वो सख्त
आवाज अब घुलने लगी थी | प्रशांत को ऐसा लगने लगा मानो वह हवा में तैर रहा हो...." साहब जी
संभलिये....." हवा के तेज झोंके से
प्रशांत हड़बड़ा कर उठ बैठा | दूसरे ट्रैक पर एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई गुजर गयी थी |
सूरज ने
अपनी लौ थोड़ी और ऊपर सरका दी और धूप में धीरे-धीरे गर्मी घुलने लगी | अनमने ढंग से प्रशांत ने एक नजर ट्रेन में अपने आसपास फेका |
अधिकांश यात्री जग चुके थे |छोटे बड़े बच्चों ने मिलकर
ट्रेन में उधम मचा रखा था | कोच के दूसरे सिरे पर शौचालय के पास यात्री घनत्व कुछ ज्यादा हो गया था |
वहां कुछ यात्री चार बंद दरवाजों में से किसी भी एक के खुलने का
बेसब्री से इंतजार कर रहे थे |बच्चों की धमा चौकड़ी शायद उनके
आंतरिक दबाब को बढ़ाये जा रही थी |एक सज्जन अपना आपा खो बैठे -" बंदरों के बच्चे हो क्या ? शांति से बैठ नहीं सकते
" .... "बंदरों के नहीं गोरिल्ला के " - एक नटखट बच्चे ने गोरिल्ला
की तरह झपटते हुए उनका मुँह चिढ़ाया |प्रशांत के सूखे होठों पर
तरल मुस्कान फ़ैल गयी |..."गोरिल्ला "....पर शायद इस शब्द की आँच ने जल्दी ही उस तरलता को सोख लिया |...."
फाइट गुरिल्ला लाइक गुरिल्ला
"... प्रशांत को लगा जैसे वह ट्रेन में नहीं उस मीटिंग में बैठा हो
जहाँ बड़े साहब आँखों से अंगारे बरसाते हुए चिल्ला रहे थे |....." क्या नहीं है तुम्हारे पास ,
सर पर छत है ..." पास
में रेहान बुदबुदाया - "टूटी है "
...." खाने को राशन है "....रेहान फिर बुदबुदाया - " सड़ा है
" ...." पीने को पानी है "... रेहान - " गन्दा है " ...." पैरों में जूते है ..." -
" फटे है "...प्रशांत ने रेहान को चिकोटी काटी - "चुप " ..." ये सब कुछ नहीं है उनके पास ,
तुम्हारे हथियार बेहतर है ,तुम्हारी ट्रेनिंग बेहतर है ,
फिर क्यों छिपे बैठे हो तुम
अपने इस बिल में".... रेहान से रहा नहीं गया, फिर बुदबुदाया - " सर ठीक कह रहे है , बिल ही तो है यह जहाँ हम
रहते है "...." बिल से बाहर निकलो , गुरिल्ला
से गुरिल्ला की तरह लड़ो ,जाओ जंगलों में घूमो ,
उन्हें खोजो और मार दो
" बड़े साहब ने जैसे अपने दाँतों से ही
चबा कर गुरिल्ला को मार दिया | ...."रंधीर !!" ..." यस सर " रंधीर साहब सावधान
हो गए थे | ..." हमारे ऊपर बहुत प्रेसर है , प्लान एन ऑपरेशन ऑफ़ फॉर डेज , गो टू जन्गल्स, कम बैक विथ सम अचीवमेंट्स "
...." हो जायेगा सर"
रंधीर साहब ने बुझे हुए स्वर में कहा
| कई दिनों से न जाने
प्रशांत को क्यों ऐसा लग रहा था कि रंधीर
साहब में जो एक आग थी वो धीरे-धीरे बुझती जा रही है | पर जिम्मेदारी की हवा से आज वो आग फिर
लहक उठी थी | बड़े साहब के जाते ही उनकी आवाज कड़क हो उठी थी .." हम कल से चार दिन के
ऑपरेशन पर रवाना होंगे " - रंधीर साहब ने ऑपरेशन की ब्रीफिंग शुरू कर दी |
" टेरेन कैसा है ?
हम नहीं जानते | इंटेलिजेंस इनपुट भी
कुछ मिला नहीं है - हमें बस इतना पता है
कि हम अपना अगला चार दिन जंगल में बिताने वाले है "- रंधीर साहब ने सब का
भविष्य तय कर दिया था | " इस पूरे इलाके को नक्सलियों क़ी माँद कहा जाता है , पर ध्यान रहे , वो शेर नहीं गीदड़ है | छुप कर धोखे से वार करना उनकी फितरत है "-
रंधीर साहब की एक आँख में क्रोध उतर आया
था और दूसरी में घृणा | " गरीब आदिवासियों को शिखंडी की तरह ढाल बना रखा है सालों ने "- रंधीर साहब के मुँह से पहली बार गाली निकली थी शायद , वो थोडा झेंप गए | आवाज को संतुलित करते
हुए उन्होंने ब्रीफिंग जारी रखी " वो इलाके के चप्पे चप्पे को जानते है ,जंगल के हर छुपे रास्ते
उन्हें पता है , और सब से खतरनाक बात तो यह है कि वो हमारे
एक- एक मूवमेंट के बारे में जान सकते है | " और हम ...." - रंधीर साहब ने ठंडी आह
भरी | " हमारे पास इलाके और उनके बारे में जानने के लिए बस ये है "- रंधीर साहब
ने टेबल पर फैले मैप की ओर इशारा किया | फिर थोड़ी देर तक वो मैप से ही जूझते रहे| मैप पर उन्होंने चार दिन के समय को चार स्थानों में बदल दिया | तीन निशान लगाने के बाद रंधीर साहब ने आखरी निशान राजपुर पर लगाया -
"यहाँ हमारा आखरी ऑपरेशन होगा - घेराबंदी और सर्च -" फिर पूरे जोश से भर
कर एक साँस में ही रंधीर साहब ने एक नारा जैसा लगाया --" इन चार दिनों में
हमारे तीन बड़े दुश्मन होंगे - भूख , प्यास और नींद और
तीन बड़े दोस्त होंगे - हथियार, हौसला और हमसाया " उनकी साँस
शायद चुक गयी |एक गहरी साँस ले कर उन्होंने फिर से बोलना शुरू किया , पर प्रशांत को लगा जैसे यह आवाज कहीं दूर आसमान से आ रही हो - " आखरी ऑपरेशन के बाद वापस लौटते समय हमें
सबसे ज्यादा अलर्ट रहना होगा क्योंकि यही वह समय होगा जब हमारे दुश्मन सबसे ज्यादा ताकतवर होंगे" | प्रशांत ठीक से समझ नहीं पाया
कि रंधीर साहब ने किस दुश्मन की बात की ,
नक्सलियों की या उन तीन दुश्मनों की जिसमे से तीसरे ने
उसे फिर से दबोच लिया |पैरों में लिपटा चादर फड़फड़ा रहा था |
साइड लोअर बर्थ पर
पीठ टिकाये प्रशांत की गर्दन खिड़की की ओर झुक गयी थी और चारो तरफ सन्नाटा पसरने लगा
था |
सन्नाटे ने
धीरे-धीरे पसरते हुए उस सिरे को छू लिया जहाँ कर्ण सिंह की चीख ने उसके सारे
तिलस्म को तोड़ दिया ...." साहब जी संभलिये " कर्ण सिंह ने प्रशांत को
पीछे से पकड़ कर झकझोरा | प्रशांत होश में आया | अभी तक वह नींद की बेहोशी में चलता जा रहा था | दो कदम आगे एक बड़ा गड्ढा था जिसमे प्रशांत गिरने ही वाला था अगर वक्त पर
कर्ण सिंह ने उसे नहीं बचाया होता |कर्ण सिंह के कंधे पर एक कृतज्ञ हाथ
ने उसकी सारी थकावट मिटा दी, वह सक्रिय हो उठा | "साहबजी सामने राजपुर गाँव है , मै अपनी सेक्सन को ले कर आगे बढ़ता हूँ , गांववालों को घरों से निकाल कर मैदान में बैठाता
हूँ , आप पीछे से पूरी
पार्टी के साथ आकर सर्च की कार्रवाई कीजिये" | प्रशांत ने इशारों से ही स्वीकृति दे दी |प्रशांत अब पुरे होश में था |उसे राजपुर का सर्च करना था |जल्दी जल्दी उसने बची हुई नफरी को आवश्यक निर्देश
दिया और राजपुर की ओर बढ़ने लगा |
राजपुर
....जहाँ न तो राज का कोई चिन्ह था और न ही पुर का कोई निशान | पुरातात्विक अध्ययन के लिए
उपयुक्त इस गाँव में आधुनिकता का संक्रमण अभी प्रवेश नहीं कर पाया था , और भविष्य में भी इसकी कोई
सम्भावना नहीं थी क्योंकि प्रवेश के सारे
रास्ते बंद कर दिए गए थे , न सड़के थी न बिजली ,न तार वाला संचार था न बेतार
वाला | अपने चारो पहियों पर बैठा लोकतंत्र भी
गाँव में पहुँचने के लिए शायद रास्ता खुलने की बाट जोह रहा था |
पर प्रशांत को इन सबसे पहले
गाँव में प्रवेश करना था | गाँव में घुसते ही प्रशांत
को लगा जैसे यह गाँव नहीं बल्कि
खानाबदोशों का कोई डेरा हो |मिट्टी के
टूटे-फूटे घरों में आधा पेट भरने लायक राशन - बर्तन थे और आधा तन ढकने लायक कपड़े |किसी विपत्ति में अगर उन्हें
गाँव छोड़ना भी पड़े तो न तो सामान साथ ले
जाने में कोई परेशानी थी और न ही उसे छोड़ देने में |किसी-किसी घर में प्रशांत ने मिट्टी की पीढ़ी (देवीमूर्ति
) भी देखी थी और लकड़ी का क्रॉस भी |शायद ये लोग अपनी बदहाली
मिटाने की प्रार्थना अपने पुराने देवी देवताओं से भी करते थे और नए से भी |
पर अभी तक उनकी फरियाद किसी
ने नहीं सुनी थी |सीलन और बदबू से भरे घरों की तलाशी करता करता प्रशांत अब थकने लगा था | उसने अनमने ढंग से बाकी का काम पूरा किया और फिर अपनी पूरी
पार्टी लेकर वहां पहुँच गया जहाँ कर्ण सिंह ने गांववालों को इकट्ठा कर रखा था |कर्ण सिंह ने गाँव वालों से पहले ही पूछताछ कर ली थी
| कोई शाकिया
आदमी उसे नहीं मिला था | प्रशांत के आते ही कर्ण सिंह
ने उसे अपने इस शोध कार्य से अवगत कराया - " साहब , इनमे कोई नक्सली नहीं है , ये सब खेती और मजदूरी करने वाले गरीब लोग है | " प्रशांत ने ऐसे सर हिलाया जैसे उसे पहले से ही यह
पता हो | समय बिताने के लिए प्रशांत गाँव वालों के पास जा कर बात करने लगा |
प्रशांत को यह जान कर ज्यादा
आश्चर्य नहीं हुआ कि उस गाँव में कोई पढ्ना लिखना नहीं जानता था | पर प्रशांत पढ़ सकता था और उसने गाँव के बूढ़े मजदूरों की झुर्रियों में आजादी के बाद से चलायी गयी सभी योजनाओं
की विफलता पढ़ ली थी |प्रशांत जल्द से जल्द वहां से जाना चाहता था पर उसे मालूम था
कि उसे अभी थोड़ा और
इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि दूसरी पार्टी का कमांडर रेहान है और रेहान तब तक तलाशी करता रहेगा जब तक उसे कुछ
मिल नहीं जाता | " मिल गया सर " - रेहान की आवाज वायरलेस से छलक गयी | " मै उसे लेकर आपके पास आ रहा
हूँ "- रेहान जैसे उड़ कर प्रशांत के पास पहुँच जाना चाहता था |प्रशांत ने देखा थोड़ी दूरी पर
रेहान क़ी पूरी पार्टी नजदीक आ रही थी |रेहान आगे-आगे चल रहा था , उसके पीछे पूरी पार्टी कोल्हू के बैल क़ी तरह सर
झुकाए सुस्त कदमो से चल रही थी | थोड़ा गौर से देखने पर प्रशांत को लगा
जैसे रेहान के लम्बे कद की छाया में लिपटा हुआ
एक दस - बारह साल का दुबला-पतला
लड़का ऐसे चल रहा हो जैसे उसके जिस्म से
जान निचोड़ दी गयी हो |नजदीक पहुँचते ही प्रशांत ने पूछा - " कौन है यह लड़का ?" | रेहान की आवाज में घृणा और उपहास बराबर मात्रा में था - " ए
नक्सल इन मेकिंग सर " प्रशांत के चेहरे पर अविश्वास की रेखा देख रेहान ने
दलील दी - " स्साला तीन दिनों तक देसी कट्टा लेकर नक्सलियों के साथ इसी इलाके
में घूमता रहा है, पूछने पर बताता है कि पार्टी वालों
ने बाबा को सौ रूपये दिए थे इसलिए उनकी मजदूरी की थी " | प्रशांत ने लड़के को ऊपर से
नीचे तक देखा - " क्यों रे! क्यों घूमता है उनके साथ "- उत्तर जानते हुए
भी प्रशांत ने बस उसकी आवाज सुनने के लिए पूछा | लड़का चुप रहा | पर रेहान से
चुप नहीं रहा गया - " इसके मुँह में खून लग चुका है सर ,आज देसी कट्टा उठाने पर सौ रूपये मिले है , कल को ए के फोर्टी सेवेन उठाएगा और हजारों लाखों
कमाएगा " | प्रशांत अभी भी उन खाली बदबूदार घरों से बाहर नहीं निकल पाया था इसलिए लाख को अनसुना कर सौ के बारे में
सोचने लगा | प्रशांत सोच रहा था कि सौ रुपयों में उन खाली घरों
का कौन सा कोना किस सामान से भरा जा सकता है
| प्रशांत का गणित
गड़बड़ा गया , वह झल्ला उठा - " छोड़ो , जाने दो इसे " | इसके पहले कि रेहान कुछ कह पाता
वायरलेस सेट पर रंधीर साहब की करकदार
आवाज उभरी - " प्रशांत ! क्या सर्च समाप्त हो गया है " | हड़बड़ा कर प्रशांत बस इतना कह पाया - " यस सर " |
" कुछ मिला क्या ?
“- रंधीर साहब शायद हाँ
सुनना चाहते थे | " "नहीं सर" - रेहान को आँखों से समझाते हुए प्रशांत ने जबाब दिया | उधर से आदेश मिला - " ठीक है फिर जल्दी आर वी पर पहुँचो, फ़ौज बहुत थक चुकी होगी |" " यस सर "- प्रशांत ने पूरी पार्टी को चलने का
इशारा करते हुए कहा |
आर वी (मिलने का
स्थान ) पर पहुँच कर सारी पार्टियाँ एकसाथ हो गयी | यह एक इक्कासी
सदस्यों की मजबूत सैनिक टुकड़ी थी जिसके पास पाथेय के रूप में अब अपने
मजबूत इरादों को छोड़ कर और कुछ नहीं बचा था| सफ़र बहुत
लम्बा था इसलिए यह आखरी पाथेय भी धीरे-धीरे ख़त्म
होता जा रहा था | भूख ,प्यास और नींद तीनों
दुश्मन शक्तिशाली हो उठे थे | निष्पक्ष प्रकृति भी निष्ठुर हो चली
थी | सूरज अपने यौवन के उन्माद में था और उसके पराक्रम
से आक्रांत पेड़ो ने पहले ही अपने हथियार (पत्ते) गिरा दिए थे | उबड़ खाबड़ धरती भी कदम-कदम
पर सैनिकों का मनोभाव बदल रही थी | सहज ढलानों पर सब तेज कदमों से चलने लगते थे जैसे कुछ कदमों में ही बेस कैम्प पहुँच जायेंगे |पर कठिन चढ़ाई उनकी बची हुई सांसों का अमूल्य खजाना खाली
कर जाती थी | प्रशांत ने जैसे हवा को अपनी पीड़ा सुनाई और डरते डरते
वायरलेस का पी टी टी (प्रेस टू टाक )
स्विच दबा दिया - " सर ! फ़ौज बहुत
थक गयी है , थोड़ा आगे कुआँ के पास पेड़ों की छाया है , अगर आपका आदेश होगा तो हम सब थोड़ी देर के लिए
हाल्ट कर सकते है " | रंधीर साहब गरज उठे - " तुम जानते हो कि ऐसा करना खतरनाक है , नक्सली हमारी कमजोरी जानते
है। वो वहीं अटैक करेंगे जहाँ हम कमजोर पड़ेंगे " | " यस सर"- प्रशांत की कुछ
और बोलने कि हिम्मत नहीं हुई | " ऐसा करो , सिर्फ दस मिनट का हाल्ट करो,
पूरी सावधानी से सेक्सन को
फैला देना " - रंधीर साहब भी शायद गर्मी से पसीझ गए थे | प्रशांत ने कुएँ के पास
हाल्ट का इशारा किया | सभी की जान में जान आई | कुछ लोग पानी निकालने के लिए कुएँ के पास दौड़े कुछ पेड़ों कि छाया में लेट गए
| चार दिनों से जंगलों में भटकते इस फौजी दल पर शायद प्रकृति
को भी तरस आ गया था। कुएँ के पानी ने जैसे खुद ही उछल कर उनकी प्यास बुझाने की
तैयारी कर रखी थी। पेड़ों को भी जैसे यह मालूम था कि ये थके हारे फौजी इसी रास्ते
वापस लौटेंगे इसीलिये उन्होंने अपनी फैली हुई छाया को समेट कर घना कर रखा था। शायद
प्रकृति की इस उदारता को ही भाँप कर नक्सलियों ने इसी जगह का चुनाव कर रखा था। चारों ओर
ऊँची ऊँची पहाड़ियां थी , रास्ता सकड़ा था , गिने चुने आठ दस पेड़ ही सूरज
से लोहा ले रहे थे। टूटी- फूटी जमीन बारुद को सूंघ लेने वाली पेशेवर फौजी आँखों को
भी धोखा दे सकती थी। पर उसे अपने इस हुनर की नुमाइश की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी, देखने
वाली आँखें पहले ही नींद से बोझिल हो चली
थी। पेड़ो की छाया मे सिमट कर पूरी टुकड़ी
महज कुछ सौ मीटर के दायरे फैली गई। कहते है कि कई जानवरों की बनिस्पत इंसान में
खतरे को भाँपने की क्षमता कम होती है, पर इंसान होते हुए भी लगभग पशुता के स्तर पर जीने वाले इन
फौजियों को शायद पूर्वजों ने कुछ हद तक अपनी रस्यमयी शक्तियाँ शौंप दी थी। प्रशांत
का दिल किसी अनहोनी आशंका से घबड़ाने लगा |उसने पूरी फ़ौज को मार्च करने का का इशारा किया , तभी एक कोयल सी आवाज गूंजी - " सभी पोजीशन ले लो " - प्रशांत कि छठी इन्द्री ने खतरे
का एलान कर दिया |पर कोई पोजीशन नहीं ले पाया |जब तक वो संभल पाते तब तक बहुत देर हो चुकी थी |चारों ओर से मौत की बारिश होने लगी |छोटे छोटे कई
ज्वालामुखियों ने धूल,धुएं और धमाके से पूरे आसमान को भर दिया |नक्सलियो ने एक साथ कई
बारुदी सुरंगो मे विस्फोट कर दिया था। धमाकों की आवाज में सैनिकों की चित्कार घुट कर रह गयी। नक्सलियों ने छुपने और बचने की कोई सम्भावना नहीं छोड़ी थी | विस्फोट से बचे सैनिको पर
वो दनादन मौत की गोलियाँ बरसा रहे थे। उनकी योजना सौ प्रतिशत सफलता की थी जिसमे
में वे लगभग पूरी तरह सफल भी हो जाते अगर
सबसे दूर फैली हुई रेहान की सेक्सन भी चपेट मे आ गयी होती। पर दुर्भाग्य भी शायद रेहान
की गोली से घबड़ा कर उसके नजदीक नही जा पाया था। “हेड्क्वाटर को खबर करो” – रेहान
ने चीखते हुए वायरलेस ऑपरेटर को आदेश
दिया। हेड्क्वाटर से मदद की आशा ने
मानो सेक्सन को फिर से जिन्दा कर दिया। गोलियों
का मुँह बन्द करने के लिये रेहान ने मोर्टार से कई गोले दागे। मोर्टार की
भयानक आवाज ने शायद गोलियों का दिल दहला दिया। वे दूर भाग कर लुकने- छीपने लगी।
सेक्सन में कुल सात लोग बचे थे। रेहान ने उनमे से चार को चार अलग- अलग पहाड़ियो पर
फायर करते रहने का हुक्म दिया और खुद दो
को साथ लेकर कुएँ की ओर सरकने लगा। रेहान ने देखा चारो ओर सैनिको की क्षत-विक्षत
लाश पड़ी थी |बोटियाँ अपने जिस्म की पहचान खो चुकी थी। धमाको की शोर मे पसरे मौत के इस
सन्नाटे ने रेहान को बहरा सा बना दिया। अब केवल उसकी आँखे काम कर रही थी जिससे वह हर जगह किसी हरकत करते जीवन के टुकड़े
को ढूँढ रहा था। आदि मनु की तरह मौत की इस बाढ़ मे जीवन के किसी भी सम्भावित
बीज को बचाने के लिये वह अपनी नौका ले कर
तुरत उसके पास पहुँच जाना चाहता था। बेचैनी और बेहोशी मे रेहान तडपती लाशों को भी गड्ढे में घसीट कर सहेज
रहा था | तभी एक गड्ढे के पास
उसने प्रशांत के शरीर में हलचल देखी | "प्रशांत सर !!! आपके आगे एक गड्ढा है, वहां तक क्रौल कीजिये
"-रेहान अपनी पूरी ताकत से चीखा | "-धांय..." लुकाई हुई गोली ने पीठ पर वार कर
दिया और रेहान की वह शायद आख़री चीख थी | प्रशांत जड़ हो चुका था , अपना नाम सुन कर जैसे वह मौत की गहरी नीन्द
से जग गया। कीड़े कि तरह रेंगता हुआ वह
अपने भाग्य से जिन्दगी कि भीख मांगने लगा |
पर गड्ढे में पहुँचने के ठीक
पहले उसे लगा कि कोई चीज उसके दाहिने पैर से टकराई है |उसकी चीख के साथ ही एक गरम तरल पदार्थ का फव्वारा
फुट गया |दर्द से कराहते प्रशांत ने अपनी साँस का आखरी कश लिया और गड्ढे में कूद पड़ा |
उसकी आँखे असह्य दर्द को देख
नहीं पाई और धीरे धीरे बंद होने लगी |
प्रशांत ने हडबडा
कर अपनी आँखे खोल दी |पैर में लिपटे चादर को हटा कर उसने अपना जख्म देखा |पट्टी ठीक से बंधी थी और दर्द कहीं दिख नहीं रहा था
|राहत की साँस के
साथ प्रशांत ने अपना रुमाल निकाला और पसीने के साथ उस टीस को भी पोछ डाला
जो मन में अभी भी रिस रहा था |डॉक्टर ने पैर के घाव का इलाज कर दिया था | मन के घाव का इलाज उसे खुद ही करना था |यह पहला मौका था जब प्रशांत
को घर जाने की कोई ख़ुशी नहीं थी |
पर वह फिर से खुश होना चाहता था, सब कुछ सामान्य कर लेना चाहता था| पास पड़े बोतल से पानी निकाल कर उसने अपने मुँह पर छींटा मारा और अपने अतीत को
धो दिया | अतीत को पीछे छोड़
प्रशांत वर्तमान से जुड़ने की कोशिश करने लगा| उसके वर्तमान में सामने लोअर बर्थ पर बैठे वे पाँच सज्जन
थे जो किसी भविष्य की बात कर रहे थे | " तुम्हारा भविष्य बहुत
उज्ज्वल है " -बच्चों वाला परिवार शायद पीछे कहीं उतर गया था, उसकी जगह पर बैठे पाँच लोगों
में से एक अधेड़ ने यह कहा था |बाकी चार नौजवानों का चेहरा एकदम से
खिल गया | सभी शर्ट, पैंट ,टाई और
जूते पहने हुए किसी कंपनी के मैनेजर जैसे
लग रहे थे , और शायद थे भी | अधेड़ उन चार नौजवानों का बॉस था
क्योंकि केवल वही बोल रहा था - " हमारी कंपनी के लौंच करते ही हमें ऐसी
अपार्चुनिटी मिलेगी यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था , यु ऑल आर लकी ट्रेनीज " , चारो के चेहरे गर्व से दमक
उठे | " तुम्हे ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी है , केवल पचहत्तर , ओनली सेवेंटी फाइव टारगेट्स है तुम्हारे पास ,
नक्सली हमले में केवल
पचहत्तर जवान शहीद हुए है |" - चारों को लगा जैसे सचमुच पचहत्तर एक छोटी संख्या हो |प्रशांत चौंक पड़ा |
" ट्रैप दिस रेयर अपार्चुनिटी " बॉस ने झपट कर अपनी मुट्ठी में
अपार्चुनिटी को कैद कर लिया | चारो मैनेजमेंट ट्रेनीज को लगा
जैसे अपार्चुनिटी की जगह बॉस ने
उनका कैरियर अपनी मुट्ठी में बंद कर
लिया है |वे मुट्ठी के खुलने का इंतजार करने लगे |कैरियर खुला, -
" जानते हो हमारी
जेनेरस सरकार ने प्रत्येक शहीद के घर वालों को कितना पैसा दिया है ? "
" थर्टी लाख सर
"- एक ट्रेनी चहका| " वेरी गुड अमित , तुम बहुत ऊपर जाओगे "| बॉस की शाबाशी ने अमित का उत्साह दूना कर दिया, उसने बाकी साथियों को थोड़ी हिकारत से देखते हुए कहा - " मैंने टाइम्स में पूरी रिपोर्ट पढ़ी है सर ,उसमे लिखा था कि यदि सरकार
ने इसका आधा भी सैनिकों की बेसिक नीड और साजो सामान पूरा करने में खर्च किया होता तो ये बेचारे सैनिक शहीद नहीं
होते " - मुस्कुराते हुए अमित ने
दुबारा शाबासी लेने के लिए बॉस की तरफ देखा | पर बॉस ने उसके इस जेनरल नॉलेज को अधकचरा ज्ञान बता कर ख़ारिज कर दिया -
" तुम्हे गहराई में जा कर सोचने की आदत डालनी होगी अमित , अवलेबल रिसोर्सेज को
प्रायोरिटी के आधार पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए, सरकार की प्रायोरिटी न तो गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा है और
न ही सुरक्षा "- बॉस अंत तक आते आते अपनी
तुकबंदी से खुश हो गए थे | प्रशांत को अपने इस वर्तमान
से भी वितृष्णा होने लगी उसकी आँखों में
तमाम बड़े नेताओं और अफसरों की खबरे तैरने लगी जिन्होंने देश के रिसोर्सेज का इस्तेमाल अपनी प्रायोरिटी के
अनुसार किया था | अमित बॉस की ख़ुशी को किसी भी कीमत पर कम नहीं होने देना चाहता था -
" आपने कितनी गहरी बात कही सर , हमें अभी वक़्त लगेगा यह सब सीखने में |" बॉस पर थोड़ा और नशा चढ़ा
-" सरकार की प्रयोरिटी है बिजनेश जिससे देश तरक्की करता है। और ये भी तो सोचो
क़ी सरकार की इसी नीति से तो आज हमें यह अपोर्चुनिटी मिली है |" अपार्चुनिटी शब्द सुनते ही सब फिर से सचेत हो गए | प्रशांत उन लोगों की बात सुन कर अन्दर ही अन्दर
घुटने लगा था | " सेवेंटी फाइव फैमिलीज के पास टोटल ट्वेंटी टू कड़ोड़ फिफ्टी
लाख रूपये है इन्वेस्ट करने के लिए , हमारी कंपनी के पास सारे प्रोडक्ट्स है , यूलिप है , इ एल एस एस है ,इंश्योरेंस है ,म्युचुअल फंड है , फिक्स्ड डिपोजिट है , क्या नहीं है हमारे पास , किसी भी कीमत पर यह
इन्वेस्टमेंट हमारे हाथ से नहीं निकलना चाहिए "- चारो ट्रेनीज के चेहरे फिर
से लटक गए थे क्योंकि उनका कैरियर बंद हो गया था | " बड़ी मिहनत से मैंने अख़बार वालों से उन पचहत्तर
परिवारों का पता लिया है , तुम्हारे पास जो पोलिसी पेपर है उसमे उन सब का पता लिखा है " - बॉस साँस
लेने के लिए थोडा रुके पर ज्यादा वक्त नहीं था उनके पास ", सबसे ज्यादा परिवार यु पी
में है ,अमित और नवीन तुम्हे यु पी के सारे टारगेट्स टच
करने है ," अमित और नवीन चौकन्ने हो उठे | " आई हैव फेथ इन यु अमित , जाओ किसी तरह इन फेमलिज को कनविंस करो , मुझे हर हालत में ये सारी पोलिसियाँ अपनी
मुठ्ठी में चाहिए, तुम दोनों लखनऊ उतर जाना " बॉस ने अभी भी ट्रेनीज का कैरियर खोला
नहीं था | ट्रेन क़ी रफ़्तार
कम होने लगी थी , शायद लखनऊ आने वाला था | अमित और नवीन ने अपना सामान उठा कर गेट पास रखना शुरू कर दिया |पर बंद कैरियर के साथ जाना अमित को अपशकुन जैसा लग
रहा था , उसने अपना कैरियर
खुलवाने का आख़री प्रयास किया - " सर ,काश बचे हुए छह भी शहीद हो गए होते और वो भी यु पी
के होते ...." अमित की कुटिल मुस्कान ने अपना काम कर दिया - " दिस इज द
स्पिरिट आई वांट "-बॉस ने एक मुक्का बर्थ पर मारते हुए ट्रेनीज का कैरियर खोल
दिया और सारे एक साथ हँस पड़े। प्रशांत को लगा जैसे किसी ने उसे गाली दे दी हो | काश वह भी शहीद हो गया होता | मन में धीरे धीरे टीस रिसने लगी थी और
प्रशांत ट्रेन की खिड़की से झांकता हुआ फिर से अपने अतीत में समा चुका था
......|
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